कवि कुलगुरु कालिदास के साहित्य में प्रकृति प्रसाद

  • नरेन्द्र कुमार एल. पण्ड्या .
Keywords: .

Abstract

वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये । जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।। या दुग्धाऽपि न दुग्धेव कविदोग्धृभिरन्वहम् । हृदि नः सन्निधत्तां सा सूक्तिधेनुः सरस्वती।। वागर्थ के समान पार्वतीपरमेश्वर और पार्वतीपरमेश्वर के समान महाकवि कालिदास के वागर्थ को वन्दन करता हूँ। चतुर्वर्गफलप्रद, कलावैक्षण्यप्रदायक, कीर्ति और प्रीति को देनेवाले साधुकाव्यों से समलङ्कृत संस्कृतसाहित्यसुधार्णव के उज्ज्वलनीलमणिकल्प रसभावमय कालिदासकविवर के वरेण्य, शरण्य वाङ्मय में अनेकविध वैशिष्ट्य दृग्गोचर होते हैं। काव्यकलानिधान श्रीकालिदासकवि की काव्यकला अनेक प्रकार से सहृदय भावकों को विशाल रसभावामृतसिन्धु में अवगाहन के सुख का आस्वादन करने में कारक-उपकारक होती है। सत्त्वोद्रेक के माध्यम से ब्रह्मानन्दास्वादसहोदर आनन्द में लीन होने का परमसौभाग्य भी कविकला से प्राप्त होता है। (के लीयते अनया इति कला)
Published
2020-04-04
Section
Research Article