संशय की एक रात और मूल्यबोध
Keywords:
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Abstract
एक ओर कवियों को देश निकाला का ऐलान किया जा रहा हो और दूसरी तरफ पूँजीवादी, निगमिक पूँजीवादियों द्वारा प्रदत्त धन के आधार पर नोबल, सरस्वती, व्यास, ज्ञानपीठ या भारतभारती सम्मान दिये जा रहे हो तो नरेश मेहता के आत्म संघर्ष को राष्ट्र संघर्ष एवं समाज संघर्ष से जोडकर मूल्यबोध की बात करना सामूहिक प्रयास हो सकता है परंतु वैयक्तिक प्रयास कभी नहीं हो सकता। डॉ. सुरेश्चंद्र एक ऐसे आलोचक, कवि एवं रचानाकार हैं जिन्होंने "बीसवी सदी का रामकाव्य और मूल्यबोध, 'नरेश मेहता की काव्य साधना', 'दलित चिन्तन की दिशाएँ', 'महाभिनिष्क्रमण (काव्य नाटक), दो काव्य संग्रह 'कर्मण्येवाधिकारस्ते, भगवान का अनुभव एवं कई किताबों के सम्पादन के साथ आलोच्य कृति "समकालिन मूल्यबोध और संशय की एक रात' को अध्ययन की दृष्टि से विषय प्रवेश, उपसंहार के अलावा 6 अध्यायों एवं 152 पृष्ठों में विन्यस्त किया है। विषय प्रवेश में डॉ. विद्या सिंह, डॉ. शशि सहगल, डॉ. बैजनाथ शर्मा, डॉ. कमला प्रसाद पाण्डेय, डॉ. प्रभाकर शर्मा, डॉ. हुकुमचंद राजपाल, डॉ. हरिचरण शर्मा, डॉ. सुंदरलाल कथूरिया, रविन्द्रनाथ दरगन, डॉ. महावीर सिंह एवं डॉ. सरोज पंड्या के शोध लेखों एवं लेखों की सूक्ष्म खूबियों को उजागर करते हुए लिखा कि "डॉ. चौहान ने नरेश मेहता के इस कार्य को चुनौती पूर्ण और कठिन माना है। प्रस्तुत लेख में डॉ. चौहान ने काव्य नायक राम की तुलना मुक्तिबोध की अँधेरे में लम्बी कविता के नायक से करते हुए यह बताया है कि दोनों काव्य नायकों की स्थिति समान है। दोनों नायक आंतरिक विकलता में जीते हैं। प्रस्तुत लेख में संशय की एक रात के प्रति डॉ. चौहान का दृष्टिकोण प्रशंसात्मक रहा है।" (पृष्ठ 15)
Published
2020-04-04
Section
Research Article
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